दीपक ही जब दिल में अँधेरा फ़ैलाने लगा
रीता घड़ा ही जब मुझे खाने को आने लगा
तो सिवाय इसके कि मैं दुनियाँ छोड़ दूं
मुझे इक और राह भी नज़र आने लगा
गमों की रानी हमारी हमसफर हो गयी
ज्यूं ही सोचा कि ये ज़िन्दगी यूं ही बसर हो गयी
तभी इक नई राह थी हमको नज़र हो गयी
थक गया फूल दे-दे 'घायल'
कांटे देने वालों को
तो यह मन में था आया
कि क्यों ना शुरू कर दूं
अब पत्थर देना ईंट वालों को
आंसुओं को था पिया
गमों को खाया
दुश्मनों की खातिर भी
नयनों को था बिछाया
साँपों को दूध पिलाया
सारी दूनियाँ के गमों का
बीड़ा था उठाया
किसी को गीत सुनाया
खातिर में किसी की
साज़ों को बजाया
बहुत खुश हो गया जिस पर
उस पर सब राज़ था लुटाया
बुझते हुए दीपक में भरी
जोश की ज्वाला
उसमे कुर्बानी का तेल था डाला
रीता घड़ा भरने को
उसमे डाला
कुर्बानी के अमृत का प्याला
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मगर जब आँख बंद कर लें
तो अँधेरा भी अँधेरा - उजाला भी अँधेरा
फिर क्या खबर
कि दीपक जलता है
या कि बुझ गया
जब घड़ा रिसता हो
तो चाहे जितना अमृत डालो
सब निकल जाएगा
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ऐसा सोच कर- ऐसा विचार कर
होश में था आया
सब कुछ विचार किया
और मानवता को त्याग कर
इक नया रास्ता अख्तियार किया
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पड़ोस में जलते दीपक को भी
बुझा दो फूंक मार कर के
अगर अपने घर में अन्धेरा है
लोगों के घड़ों को भी तोड़ दो
लात मार कर के
अगर अपना घड़ा रिसता है
आंसुओं को सुखाओ
बीयर और व्हिस्की की आग से
फूलों को कुचलो
न्रिशंस्ता के भार से
ग़र सेवक नहीं रहने देती दुनियाँ
तो हिटलर बन जाओ
लोगों के अरमानों को
चाकलेट समझ कर चट्ट कर जाओ
भगा दो मार कर ठोकर
आज के इन, दुनिया के ठेकेदारों को
करो फिर राज्य दुनिया पर
औ स्वप्न जो विश्व विजय का था
उसे साकार बना लो
किसी को मारो ठोकर
किसी को दुत्कारो
धो कर हाथ
बहती गंगा में
अपने भविष्य को संवारो
क्योंकि
यही है आज का सफल जीवन
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जो अत्याचार करना है कर लो
मगर
खुदा के वास्ते
माँ..............बहिन..............बेटी
को बलात्कार ......गैंग रेप का
शिकार न बनाओ
कोख में ही बेटियों को
न मार गिराओ
कुछ तो सोचो
कुछ तो विचारो
अगर स्त्री ही ना रही
तो जननी कहां से लाओगे
बिना जननी के
संसार को आगे कैसे चलाओगे
ओ........ ओ............. ओ....................बेवकूफ़ो
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी तो न मारो
जागो............जागो............अभी भी वक्त है
अपने आप को ........अपने भविष्य को
बचा लो ...........संसार को बचा लो ........संसार को बचा लो