Sunday, January 27, 2013



ना  प्यार ...
ना  इज़हार  रहा ...
बस  फर्क  सिर्फ  इतना  सा  रहा

वो "मिट्टी के ऊपर " रोता  रहा,
और  मैं "मिट्टी के अन्दर "सोती  रही 




डूब  जाता  हूँ  उनकी  आँखों  में
गहरी  झील  हैं  उनकी  आँखें




बह  जाता  हूँ  उनकी  आँखों  में
बहती  नदिया  हैं  उनकी  आँखें






खो  जाता  हूँ  उनकी  आँखों  में
अथाह   सागर  हैं  उनकी  आँखें
जल  जाता  हूँ  उनकी  आँखों  में
ज्वाला  मुखी  हैं  उनकी  आँखें






भीग  जाता  हूँ  उनकी  आँखों  में
काली  घटा  हैं  उनकी  आँखें
क्या  से  क्या  हो  जाता  हूँ  उनकी  आँखों  में
कैसी  और  क्या  बला  हैं  उनकी  आँखें 













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