Wednesday, December 19, 2012


दीपक ही जब दिल में अँधेरा फ़ैलाने लगा
रीता घड़ा ही जब मुझे खाने को आने लगा 
तो सिवाय इसके कि मैं दुनियाँ छोड़ दूं 
मुझे इक और राह भी नज़र आने लगा 

गमों की रानी हमारी हमसफर हो गयी 
ज्यूं  ही सोचा कि ये ज़िन्दगी यूं ही बसर हो गयी 
तभी इक नई राह थी हमको नज़र हो गयी 

थक गया फूल दे-दे 'घायल' 
कांटे देने वालों को 
तो यह मन में था आया 
कि क्यों ना शुरू कर दूं 
अब पत्थर देना ईंट वालों को

आंसुओं को था पिया 
गमों को खाया 
दुश्मनों की खातिर भी 
नयनों को था बिछाया 

साँपों को दूध पिलाया 
सारी दूनियाँ के गमों का 
बीड़ा था उठाया 

किसी को गीत सुनाया 
खातिर में किसी की 
साज़ों को बजाया 
बहुत खुश हो गया जिस पर 
उस पर सब राज़ था लुटाया 

बुझते हुए दीपक में भरी 
जोश की ज्वाला 
उसमे कुर्बानी का तेल था डाला
रीता घड़ा भरने को 
उसमे डाला 
कुर्बानी के अमृत का प्याला 
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मगर  जब आँख बंद कर लें 
तो अँधेरा भी अँधेरा - उजाला भी अँधेरा 
फिर क्या खबर 
कि दीपक जलता है 
या कि बुझ गया 

जब घड़ा रिसता हो 
तो चाहे जितना अमृत डालो
सब निकल जाएगा 
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ऐसा सोच कर- ऐसा विचार कर 
होश में था आया 

सब कुछ विचार किया 
और मानवता को त्याग कर 
इक नया रास्ता अख्तियार किया 
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पड़ोस में जलते दीपक को भी 
बुझा दो फूंक मार कर के 
अगर अपने घर में अन्धेरा है 

लोगों के घड़ों को भी तोड़ दो 
लात  मार कर के 
अगर अपना घड़ा रिसता है

आंसुओं को सुखाओ
बीयर और व्हिस्की की आग से 
फूलों को कुचलो 
न्रिशंस्ता के भार से 

ग़र सेवक नहीं रहने देती दुनियाँ
तो हिटलर बन जाओ 
लोगों के अरमानों को 
चाकलेट समझ कर चट्ट कर जाओ 

भगा दो मार कर ठोकर 
आज के इन, दुनिया के ठेकेदारों को 
करो फिर राज्य दुनिया पर 

औ स्वप्न जो विश्व विजय का था 
उसे साकार बना लो 

किसी को मारो ठोकर 
किसी को दुत्कारो 
धो कर हाथ 
बहती गंगा में 
अपने भविष्य को संवारो 
क्योंकि
यही है आज का सफल जीवन 
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जो अत्याचार करना है कर लो 
मगर 
खुदा के वास्ते 
माँ..............बहिन..............बेटी 
को बलात्कार ......गैंग रेप का 
शिकार न बनाओ 

कोख में ही बेटियों को 
न  मार गिराओ

कुछ तो सोचो
कुछ तो विचारो
अगर स्त्री ही ना रही 
तो जननी कहां से लाओगे 
बिना जननी के 
संसार को आगे कैसे चलाओगे 

ओ........ ओ............. ओ....................बेवकूफ़ो
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी तो न मारो 
जागो............जागो............अभी भी वक्त है 
अपने आप को ........अपने भविष्य को 
बचा लो ...........संसार को बचा लो ........संसार को बचा लो  

Tuesday, December 4, 2012


जिन्दगी तो सरल ही थी
बना दिया जटिल
मानव के चोंचलों ने
कभी रेडियो से कान नहीं हटते थे
फिर टीवी के दीवाने हुए
मयखाने तो पुरानी बात है
आज इन्टरनेट और
फेस बुक ने
लोग परिवारों से बेगाने किये

सभी अपने-अपने कमरे में कैद
अपनी ही बनाई और बांधी बेड़ियों से त्रस्त
अपनी-अपनी जंजीरों में जकड़े हुए हैं
बतियाने का, किसी को कुछ कहने का
किसी को सुन पाने का
किसी को समझाने का
वक्त ही कहाँ है किसी के पास

फिर कहते हैं जिन्दगी सरल नहीं
हो भी कैसे सकती है


Saturday, December 1, 2012

जीवन ................एक प्रश्न


एक दिन सुबह सैर को जा रहा था कि
अजीब मंजर नज़र आया 

एक वृक्ष की डाली पर बैठी कोयल की 
जीवन व दुनिया भर की मिठास से भरपूर
कुहू-कुहू सुनायी दी 
मानो कह रही हो ...............................................

"जिन्दगी एक ख़ुशी का गीत है"


तभी मुझे एक कीड़ा दिखाई दिया 
जो अभी-अभी काफी प्रयत्न के बाद 
मिटटी के ढेर से बाहर निकला था 
उसके अंदाज़ ने मुझे बताया..................................

" परिश्रम का का ही दूसरा नाम जीवन है"

इस पर खिलती मुस्कराती उभरती कली ने
टिप्पणी दी.........................................................

"बिना उन्नति परिश्रम व्यर्थ है 
 सो निरंतर उन्नति ही जीवन है"


ऐसा सुनते ही एक चींटी जो अपने बच्चों 
के लिए कहीं से ढूँढ कर मिठाई का दाना 
ले जा रही थी, मायूसी से बोली ..............................

" जीवन एक निष्फल परिश्रम मालूम होता है"

अभी चींटी ने ये शब्द कहे ही थे 
की वर्षा शुरू हो गयी 
और बादलों की गर्जना से 
ये शब्द फूट पड़े .................................................

"जीवन आंसुओं का तालाब है"

इस पर  एक पक्षी ने आप्पति की 
जो  अपने घोंसले से निकल कर उड़ान 
भरने की तय्यारी कर रहा था 
उसके अनुसार ....................................................

"जीवन तो आज़ादी का नाम है"
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शाम घिर आयी 
वृक्षों की डालियों पर से 
साँय-साँय कर गुज़रती समीर  
मानो कहने लगी .........................................................


"जीवन....चलने का नाम 
   चलते रहो सुबह-शाम "

रात बीत गयी 
परन्तु अपनी व्यथा के कारण
एक बीमार जो साड़ी रात सो नहीं पाया था 
सुबह होने पर कहने लगा ...............................................

"लगातार दुखों की इक कड़ी है जीवन......... बस"

नहीं ...............
तुम ग़लत कहते हो
एक तितली ने इठलाते हुए कहा..........................................

"जीवन तो सौन्दर्य है"

तभी घास पर बैठे एक युगल जोड़े में से 
प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को जीवन की जो 
परिभाषा दी; कुछ इस प्रकार है ............................ 

"प्रेम.........प्रेम..............प्रेम
 बस प्रेम ही जीवन है"                                                                                

तो पास बैठा एक शराबी झट से पूछ बैठा 
"प्रेम................किसका प्रेम...........शराब का ......हा-हा-हा "
हाँ 
उसके लिए तो ...............................................................

" शराब ही जीवन है"

अभी ये बातें हो ही रहीं थीं 
कि पिंजरे में बन्द एक तोता 
चिल्ला उठा ...................................................................

" जीवन कुछ नहीं ............
   बस एक बन्धन है"

नहीं..........नहीं 
दुनिया का ठुकराया
एक व्यक्ति कहने लगा....................................................

"जीवन एक चलती छाया है.......बस"

मैं तो अभी सोच ही रहा था कि जीवन क्या है 
इतने में एक फिल्म के ये बोल जो शायद किसी 
के घर में चल रहे टीवी पर प्रसारित हो रहे थे 
उसके कानों में पड़े ..........................................................


"ज़िन्दगी इक सफर है सुहाना 
  यहाँ कल क्या हो किसने जाना'

मगर दो जून की रोटी न जुटा पाने के कारण
तीन दिन से भूखे "इक बेचारे" को ये सब 
बकवास लगी  और उसने अपने कटु अनुभव का परिणाम 
इस रूप में ब्यान किया .................................................

" जीवन तो एक संघर्ष है"

तो चोर बाज़ार के सरदार के मुंह से 
ठहाके के साथ जो शब्द निकले 
वो कुछ यूं थे........
संघर्ष होगा तुम जैसे भोले-भाले लोगों के लिए 
हमारे लिए तो ...........................................................

"धनोपार्जन ही जीवन है"

एक अमीरजादा जो  ...................................................

"जीवन फूलों की सेज़"
समझता था 
कहने लगा................................................................

"जीवन एक सुंदर वस्तू है............बस"


पास ही कहीं एक महात्मा का सत्संग चल रहा था 
महात्मा जी ने जीवन की व्याख्या करते हुए कहा ............

" जीवन एक अपूर्ण स्वप्न है"

तभी एक खुशकिस्मत 
जिसका स्वप्न पूरा हो गया था 
जिसे दस करोड़ की लाटरी लगी थी 
कहने लगा ..............................................................

"जीवन तो एक वरदान है"

इस पर एक दुखिया युवती 
जिसकी अस्मत राह चलते 
किसी सफेदपोश ने लूट ली थी 
रूंधे गले से बोली......................................................

"जीवन एक जिन्दा लाश है"

तभी किसी गुमनाम कोने से आवाज़ आई .....................

"जीवन एक सवाल है 
 जिसका जवाब है ..............मौत"

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फिर तो मानो 
परिभाषाओं की बाढ़ सी आ गयी 
और प्रकृति का कण-कण 
मानो जीवन को परिभाषित करने को 
व्यग्र हो उठा 
वातावरण भारी हो गया 

"जीवन तड़प है............धोखा है...........विछोह है.........चाह है.......परिवर्तन है ......... आशा है.........ठोकर है...........क़ुरबानी है......इत्तेफाक है........राज़ है..........परीक्षा है......"

"जीवन इच्छाओं और आशाओं का ................ ललकार और साहस का.........सुखों और दुखों  आदि का समूह है ..........अमरत्व का शैशव है........ आत्मा के सफर का एक पड़ाव है.....आदि-आदि "

मेरे मन में भी आया की मैं भी 
जीवन को कोइ परिभाषा दूं .....

मैं सोचने लगा
और मुझे याद आने लगे .......

टालस्टाय,रूसो,ह्यूगो,मेनका 
और सुकरात आदि के शब्द  
जो उन्होंने जीवन के बारे में कहे थे 

यदि टालस्टाय के अनुसार ..................................
"जीवन आनंद है......मनोरंजन स्थल है......सेवा सदन है.............."
                                                                    
तो रूसो ने .........................................................
"जीवन को एक मज़ाक माना है ..........                                               

 वे समझते हैं ......
" जीवन परमात्मा का हमारे साथ किया गया मज़ाक है"

                                                                         


विक्टर ह्यूगो ....................................................
"जीवन को एक फूल का करार देते हैं ............जिसका मधु है प्रेम..........."

                                                                         


अगर मेनका ने ...................................................
"जीवन को काफ़ी लम्बा और भरा हुआ माना है ............."

तो सुकरात के अनुसार .........................................
"वास्तविक जीवन तो मृत्यू है........जिससे डरना बुज़दिली है............"

अभी तक मैं इन्हीं विचारों में उलझा हुआ
जीवन की सुलझी हुई, सरल, संक्षिप्त, स्पष्ट, 
सारगर्भित एवंम पूर्ण परिभाषा ढूँढने का प्रयास ही 
कर रहा था कि एक सज्जन 
"ज़िगर" की ये पंक्तियाँ गाते हुए 
मेरे पास से गुज़र गये ................................

" ज़िन्दगी इक हादसा है, और ऐसा हादसा .............
मौत से भी खत्म जिसका सिलसिला होता नहीं ......"
                                                             


ज़िगर का नाम आते ही मेरा कवि हृदय 
भी कल्पनाओं में खो गया ............
कहते हैं ...........
जहां ना पहुंचे "रवि".........वहां पहुंचे "कवि"
और दैवयोग से .
मैं "रवि" भी हूँ और "कवि" भी 
अत: मैंने निश्चय किया 
की जीवन की परिभाषा कहीं अन्यत्र 
खोजने की बजाए क्यूं ना जीवन के विभिन्न 
पहलुओं व आयामों में ही ढूंढी जाए .......
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सफर अभी ज़ारी है......
जीवन क्या है ...........
अभी भी ...........प्रश्न बना हुआ है 

"एक शब्द में व्याख्या"
मैं कर नहीं पा रहा हूँ.........

सुझावों व् परिभाषाओं का स्वागत है 




बहुत हो गया
अब कोप भवन ....या गुफा........या समाधि से


बाहर आ जाईये
मुस्कराईये

ज़िन्दगी एक गीत है इसे
गुनगुनाईये

आज बहुत अच्छा मौसम है
रंगीन संडे मनाईये