Saturday, October 13, 2012


आवाज़   आती  है 
समाजवाद  आ  रहा  है 
मिनिस्टरों  के  वायदे 
इलेक्शन   के  समय  के  पूरे  हो  रहे  हैं 
(मगर  उनके  अपने  ही  अर्थों  में )

हर  तरफ  तरक्की  हो  रही  है 
अमीरों  की  अमीरी  
गरीबों  की  गरीबी 
                                    बढ़  रही  है 








गरीबी  को  मिटाया  जा  रहा  है  
गरीबों  को  मिटा  कर 
हो  रही  है  ना  तरक्की 

अनाचार 
पापाचार  
दुराचार  
अत्याचार  
कु-विचार 
व्याभिचार
भ्रष्टाचार  
और  ना  जाने 
कौन-कौन  से  आचार  
पनप  रहे  हैं 
यूं  लगता  है 
मानो  सतरंगा  आचार  तैयार  हो  रहा  हो 
(मगर  इस  में  सदाचार  का  नाम  नहीं )


बच्चों  के  भूख  से  तड़पते  चेहरे 
अपनी  कोमलता  खो  चुके  हैं  
आज  मैं  देख  रहा  हूँ 
भारत  के  लाल  कली  से  फूल  बनने  से  पहले  ही 
मुरझा  रहे  हैं 

अरे  भाई 
तरक्की  हो  रही  है 
समय  की  कमी  है 
सब  काम  जल्दी-जल्दी  
करने  पड़ रहे  हैं 
तभी   तो  जिंदगी  का  सफ़र  छोटा  रह  गया  है 
जवानी   की  क्या  ज़रूरत  है 
लोग  बचपन  से  सीधे  ही 
बुढापे  में  कदम  रख  रहे  हैं 

क्या  यह  तरक्की  नहीं 

काम  नहीं  तो  दाम  नहीं 
(नो-वर्क  नो-पे )
यह  भी  तो  एक  समाजवादी  नारा  है 
जो  काम  नहीं  करता 







उसे  खाने  का  क्या  हक़  है ?
इसे  किस  खूबसूरती  से  पूरा  किया  जा  रहा है 
की  छे (6) साल  का  बच्चा 
हाथ  में  बुर्श  लिए 
पूंजीपतियों  के  जूते  चमका  रहा  है 
भई  ठीक  ही  तो  है 
काम  नहीं  करेगा  तो  कमाएगा  क्या 
और  कमाएगा   नहीं  तो  खायेगा  क्या 
यही  तो  समाजवाद  है 

कल  
एक  नेता  जी  भाषण  दे  रहे  थे 
कह  रहे  थे 
देश  को  तरक्की  की  ओर बढ़ाओ
जागो  देश  के  युवको 
"जाग्रति" लाओ 
हम  सभी  मिल  कर 
 "चेतना " लायेंगे 

और  शाम  को  कोठी  पहुंचे 
पी.ए  को  आवाज़  दी  
मेहता  जी  "चेतना" लाओ 
और  ठीक  आधे  घंटे  बाद 
"चेतना" आ  गयी 

असल में "चेतना " उस लड़की का नाम था 
जो जलसे मैं नेता जी का भाषण सुनने 
आई थी 
नेता जी को भा गयी 
और बिन माँ बाप की बच्ची


छोटे-छोटे बहिन-भाईओं की भूख 
बर्दाश्त न कर सकी और 
चंद सिक्कों के लिए 
नेता जी के पहलू में आ गयी

हो  गयी  न  तरक्की 
आ गया न समाजवाद 













Wednesday, October 10, 2012


मर्द  कमीने  होते  हैं 



मैं  
इश्क  की  दुनिया  से  दूर ................... 
बहुत-दूर  निकल  आया  हूँ 
अपनों  ने  भुला  दिया  है 
ऐ-बेगानों 
अब  तुम्हारे  पास  आया  हूँ 


गैरों  की  महफ़िल  में  बैठा  हूँ  
फिर  भी  सब  अपने  से  लगते  हैं 
कल  रात  अपनों  में  गया  था  पाया 
सब  चेहरे  धुंधले  लगते  हैं 

और  निकट  गया 
फिर  भी  चेहरे  ना  साफ़  हुए 
पुछा 
क्यों  भाई 
तुम्हारा  चेहरा  धुंधला  क्यों  है 
क्या  मूंह  काला  कर  लिया  है 


बोला  अपना 
क्या ....    
पी ...कर  आये  हो 


हाँ ....पी  कर ही  आया  हूँ  भाई 
अब  बिन  पिए  रहा  भी  तो  नहीं  जाता  है 
.
.
.
.
.
अपने  से  ही  पुछा 
क्यूँ  पीते  हो  'घायल '
कुछ  समझ  नहीं  आया 


बोले  अपने 
पी  कर  क्या  ख़ाक  समझ  आएगा 


मैंने  कहा 
तुम  भी  पी  लो  थोड़ी  सी 
मन  बहल  जाएगा 




बोले  अपने  बहल  नहीं .........
बहक  जाएगा 

.
.
.
नहीं ................
बहका  तो  पहले  था 
अब  ही  तो  होश  में  आया  हूँ 


अपने  हँसते  हैं 
अपना  ही  मूंह  काला  कर  के 
और  फिर  
जब चेहरे  ना  पहचाने  जाएँ 
तो  कहते  हैं 
क्यों  भाई पी  कर  आये  हो 

खैर  छोड़ो   कल  की  बात 
रात  गयी ..........बात  गयी 
कोइ  और  किस्सा  छेड़ें
*
*
*
*
*
*
कहते  हैं 
लड़की  की  
शादी  के  बाद 
दुनिया  बदल  जाती  है 


अपने  बेगाने  और ........बेगाने  
अपने  बन  जाते   हैं 
काश  मैं  भी  लड़की  होता 
और  मेरी  भी  दुनिया  बदल  जाती 




कल  एक  लड़की  कह  रही  थी 
मर्द  'कमीने '  होते  हैं 
*
*
*
*
*
*
मगर  मैं  तो   नहीं  कह  सकता 
मर्द  जो  हूँ  भाई 
मर्द  हो  कर , 
मर्द  जात  पर 
कीचड  कैसे  उछालूँ 
हाँ  अपने  पैर  उछाल  सकता  हूँ 




किसी  ने  कुछ  माँगा  था 
दे  नहीं  पाया 
सोचा .........वापिस  आये ........ना  आये 
क्या  भरोसा 
*
*
*
*
किसी  पर  विश्वास  भी  तो  नहीं  रहा 
यहाँ  तक .......कि  ......अपने  पर  भी  नहीं 


वोह  ...............क्या  था --इक  गाना 
"आस  नहीं , विश्वास  नहीं "
मेरा  मन  मंजिल  के  निशाँ  ढूंढें .......


विश्वास  हो  कैसे 
जब  आस  ही  नहीं 
और  फिर  मंजिल  होगी  
तभी  तो  निशाँ  ढूंढेंगे 


मंजिल  तो  बहुत  पीछे  छोड़  आया  हूँ 
अपनों  में  ही  अपना  
ढूंढते-ढूंढते  
इतना  आगे  निकल  आया  हूँ  कि 
चलते-चलते  कदम  थक  से  गए  हैं 





मगर  शायद 
शायद  क्या, सच  ही  तो  है 
कोइ  अपना  उठा 
और  बेगानों  की  महफ़िल  में  जा  बैठा 


अब  उस-के  मुकाबले  में 
कव्वाली  भी  तो  नहीं  गा  सकता 
क्या  हुआ  जो  सामने  वालों  में  आ  गया 
कभी  तो  अपना  था 


फिर  बहक  गया  हूँ  शायद 
मगर  आज  तो  नहीं  पी 
फिर  यह  चेहरे 
नए-नए  से  क्यूं  लगते  हैं 


हाँ  याद  आया 
में  अपनों  से  दूर 
बे-गानों  में  जो  चला  आया  था 


मगर  
कुछ  चेहरे 
जाने  पहचाने  भी  तो  हैं 
शायद  कुछ  अपने  ही 
बेगानों  में  चले  आये  हैं 
शायद  कुछ  अपने  ही 
बेगाने  हो  गए  हैं 




अपने  आते  थे 
खाते  थे 
और 
चले  जाते  थे 
और 
जा  कर 
खिल्ली  उड़ाते  थे 
......मुर्गी  अच्छी   फंसी 

इसी  लिए 
आज-कल 
अपनों  को  घास  डालना  छोड़  दिया  है 
अब  बेगानों  से  यारी  है 
जिन्हें  कम-से-कम  एहसास  तो  होता  है 
कि  खा  रहे  हैं 
और  वोह  सोचते  हैं 
कि  खा  रहे  हैं  तो .....
नमक  हलाली  भी 
करनी  होगी 

फिर  यूं  भी 
बेगाने  कुरेदते  तो  नहीं 


कहते  हैं 
बन्दर  को  
फोड़ा  (नासूर )
ना  हो 
वोह  मर  जाएगा 

अपने  आयेंगे 
हाल  पूछेंगे 
और  फोड़ा .....
देखते-देखते 
कुरेद-कुरेद  कर  
फोड़े  से  
ज़ख़्म  बना  देंगे 

बन्दर  बेचारा 
रोक  भी  तो  नहीं  सकता 
अपने  हैं 
हमदर्दी  जता  रहे  हैं 
और  वोह  फोड़ा  जो  कुरेदते-कुरेदते  ज़ख़्म  बन  चूका  है 
फाड़  फेंकेंगे 
और  बन्दर  बेचारा  मर  जाएगा 

मैं  
मरना  नहीं  चाहता  
किसी  अपने  ने 
खा  कर  (दिल )
वायदा  लिया  था 
कि  
जब  "मैं " बेगाना  बन  जाऊं 
तो  आत्महत्या  मत  करना 

हाँ 
जब  अपने  कुरेदते  हैं 
तो 
यूं  लगता  है 
कि  मैं  
तिल-तिल  कर  मर  रहा  हूँ 
अपन्री  मौत  का  सामान  
खुद  तय्यार  कर  रहा  हूँ 

और  अपनी  मौत  का   सामान  तय्यार  करना 
आत्महत्या  ही  तो  है 

इसी  लिए 
मैं  अपनों  से  दूर .........
बेगानों  में  पलता  हूँ 
कि 
वोह .....
कुरेद  ना  पायें 

खुशी के सुमन तेरी राहों में सनम सदा ही यूं खिलते रहें



खुदा  खैर  करे 
.
.
.
.
खुशी  के  सुमन 
तेरी  राहों  में  सनम  
सदा  ही  यूं  खिलते  रहें 

अब  तलक  जो  रहे 
इक्कठे  रहे 
सुख-दुःख  दोनों  को 
इकठे  ही  मिलते  रहे 

मगर 
अब  हैं  होते  ज़ुदा 
आगे  खैर  करे  ख़ुदा
सुख  भरें  तेरी  झोली 
सदा  ही  सनम 
मेरी  राहों  में  कांटे 
चाहे  खिलते  रहें 

तू  जहां  भी  रहे 
सदा  खुश  ही  रहे 
मेरे  जैसे  ही  लाखों  तुझे  मिलते  रहें

हैं  मुबारक  तुझे 
तेरी  राहें  सनम 
इन्ही  राहों  में 
तुझ  को  सफलता  मिले 

हम  तो  फिर  भी  
ये  जीवन  बसर  लेंगे  कर 
मगर  तुझ  को  कभी  ना
जुदाई  मिले 

पर .............................सुन 
.
.
.
..
हम  तो  गए  हैं  भटक 
तुम  ना  जाना  अटक .....

तेरी  राहों  में  फूल 
.
..
तेरी  राहों  में  फूल 
मेरी  राहों  में  शूल ....
.
.
.
मेरी  राहों  में  शूल 

क्यों  तुम  गए  हो  यह  भूल 


क्यों  तुम  गए  हो  यह  भूल 
अपनी  राहें  ज़ुदा  
.
.
.
.
अपनी  राहें  ज़ुदा 
जाओ  ख़ैर  करे  ख़ुदा 
और  ख़ुशी  के  सुमन 
तेरी  राहों  में  सनम 
.
.
.
सदा  ही  यूं  खिलते  रहें 


मुझे  कुछ  कहना  है 

किसे  कहूं 

कैसे  कहूं 

किन  अलफ़ाज़  से  कहूं 


जज़्बात ...लफ़्ज़ों  के  मोहताज़  नहीं 

तो  जज्बातों  को  बयान 

कैसे  करूँ 


इक  शोख  हसीं ....

मुकाम  आया  है 

जेहन  में 

तेरा  नाम  आया  है 


डरता  हूँ  लब  तक  लाने  से 

सुन  कर  तुम्हारे  रूठ  जाने  से 

कैसे  तुम्ही  से 

तुम्ही  की  बात  कहूं 


किसे  कहूं 

कैसे  कहूं 

किन  अलफ़ाज़  से  कहूं 

Tuesday, October 9, 2012



जो    चाहो .....
क्या  वो  
हो  जाता  है ...
मिल  जाता  है ....

चाहने-ना-चाहने  
से  कुछ  नहीं  होता 

जो  
मिल  जाए .....
.
.
जो  
.
.
.
मुक्कदर   में  है 
उसे  
कबूल  कर  लेना ....


अपनी  
इज्ज़त  के  लिए  
लड़ने  की  
ज़रुरत  नहीं 

लोग   
इज्ज़त  देंगे  
अगर  
तुम्हें  
इज्ज़त  के  
काबिल  पायेंगे 


लड़  कर  
तुम .....  
किसी  के  दिल  में  
इज्ज़त  पैदा  
नहीं  कर  सकते  

लड़ना तो रेप है .....
बलात्कार  है .....

बलात-कार 
.
.
.
.
.   
यानी वो  काम
जो ज़बरदस्ती किया जाए 
वो  बलात्कार  ही तो है
.
.
.  
और जो काम ज़बरदस्ती 
करवाया जाए  
वो  भी  तो  
बलात्कार ही हुआ 

Monday, October 8, 2012

छोड़ के सपनों के आँचल को सत्य से नाता जोड़ना होगा



इस  दुनिया  में 
क्या  अपना  है 
जो  कुछ  भी  है 
सब  सपना  है 

रब  सपना   है 
जग  सपना  है 
तू  सपना  है 
नाम  भी  तेरा ..
तो  'सपना' है 
  
इस  दुनिया  में  क्या  अपना  है 

अपना  आप  यहाँ  सपना   है 
रसूल-ओ-पाक  यहाँ  सपना  है 
धर्म-ओ-बाप  यहाँ  सपना  है 

सपना  है  ईमान  यहाँ  पे 
सपना  वेद  कुरान  यहाँ  पे 
भाई  का  भाई  से  नाता 
भी  तो  या-रब  इक  सपना  है 

सच्चाई  भी  है  सपना 
शांति-अहिंसा  भी  सपना  है 
सब  सपना  है - सब  सपना  है 

अगर  हकीकत  पाना  चाहो 
सच्चाई  में  आना  चाहो 

तोड़ो  सपने 
छोड़ो  आँचल 
इन  सपनो  का 

सपनों  के  जंजाल  से  तुम-को 
बाहर  तक  तो  आना  होगा 
छोड़  के  सपनों  की दुनिया  ही 
सच्चाई   को  पाना  होगा 

इस  'दुनिया'  को  छोड़  के  ही  तू 
सही-गल्त पहचान  सकेगा 
वेद ...कुरान ...ओ ...धर्म...ईमान  की 
सच्ची  हकीकत  जान  सकेगा 

छोड़ो-छोड़ो  दामन  इनका 
ये  हैं  सपने -ये  हैं  सपने 
ये  वोह  सपने 
जो  ना  कभी  भी 
होते 
किसी  के  भी  अपने 

आज  नहीं  तो  कल  आखिर 
तुम -को  इन-को  छोड़ना  होगा 
छोड़  के  सपनों  के  आँचल  को 
सत्य  से  नाता  जोड़ना  होगा 

तो  फिर  आओ 
आज  ही  क्यूं  ना 
ये  सब  कारज  कर  डालें  हम 
बुजुर्गों  ने  भी  
फरमाया  है 
काम  आज  का 
कभी  भी  प्यारो 
कल  पर  बिलकुल  ना  डालें  हम 

.........आमीन 

Saturday, October 6, 2012


आँखों से जो टपका अश्क वो चुन लिया मैंने 
तेरे सारे तानों-बानों को सुन लिया मैंने
दर्द जो अश्कों में समाया तेरा 
अपने दिल जिगर में तेरे होंठों के 
रस्ते संजो लिया मैंने 
अब यही दर्द मेरी मल्कियत भी है और 
खजाना भी 
अब मेरे खजाने में से हिस्सा मत मांग लेना 
_____________


मेरा  गम  बाँटना  चाहते  हो 
मेरा  गम  पूछते  हो 
नहीं  बताऊँगा 


कहते  हैं  बाँटने  से 
गम  आधा  हो  जाता  है 


मेरा  गम  पूछ  कर 
बाँटना  चाहते   हो 


यानी  कि  अपनी  ही  दी  हुई 
सौगात ...........
वापिस  लेना 
चाहते  हो 


कुछ  तो  शर्म  करो 


गैरतमंद  लोग 
कुछ  दे  कर 
वापिस  नहीं  लिया  करते 

Thursday, October 4, 2012

ਘੜੀ ਘੜੀ ਵਿਗੜ ਕੇ ਘੜੀ ਆਯੀ


ਘੜੀ ਘੜੀ ਵਿਗੜ ਕੇ ਘੜੀ ਆਯੀ 
ਘੜੀ-ਸਾਜ ਨੇ ਘੜੀ ਏ ਘੜੀ ਕਾਹਦੀ 

ਅੜਆ  ਅੜੇ ਕਿਹੜੇ 
ਅੜਿਯਲ ਮੌਤ ਅੱਗੇ 
ਅੜਾਂ ਅੜਾਂਗੇ ਅੜਨ ਦੀ 
ਅੜੀ ਕਾਹਦੀ 

ਤੜ-ਤੜ ਤੜੇ ਹੋਏ ਨੇ 
ਤੜੀਆਂ ਦੇਣ ਵਾਲੇ 
ਤਾੜ-ਤਾੜ ਦੇ ਰਿਹਾ ਏਂ
ਤੂੰ ਤੜੀ ਕਾਹਦੀ 

ਮਾਨਕਾ ਟੁੱਟ ਗਿਆ ਏ ਵਿਚ੍ਹੋੰ
ਪ੍ਰੇਮ ਵਾਲਾ 
ਹੁਣ ਪ੍ਰੀਤ ੜੀ ਰਹ ਗਯੀ ਲੜੀ ਕਾਹਦੀ 

  



कहते  हैं  
परवाने  चले  आते  हैं 
जलने  शमां  के  पास 
मगर  किसी  ने  पूछा है  हाल  शमां  का 
जो  जल्ती है  तमाम  रात 


ता-उम्र  जल  कर  भी  
बुझती  नहीं  प्यास 
कहते  हैं  जलने  को  परवाने  चले  आते  हैं  शमां  के  पास 


बेकरारी  के  आलम  में 
परवाना  तो  जल  ही  जाता  है 
और  हो  जाता  है  खत्म 
मगर  सोचा  है  किसी  ने  क्या  होता  है  मंज़र 
बेचारी  शमां  के  साथ 

Tuesday, October 2, 2012

Mein
dekhta hoon
aakash mein
chamakte
asankhye, an-ginat sitaare
apnee hee
tim-timahat mein magan
maano
kaali chadar per
moti jade hon


tab
mein 
tumhaari taraf 
ghoomta hoon,
teri aankhon mein
jhankta hoon
aur
soch mein 
pad jaata hoon
ki 'US-NE'
kis parkar
is sab kaa 
saman-vay
kiya hoga.....


ek jodi aankh
aur
asankhye
tim-timaate 
sitaare


mein
fir ghoomta hoon,
aashcharya ke
saagar mein
doob jaata hoon
aur sochta hoon
ki
'WOH'
jise hum
sarav kalaa sampooran
sarav-gun sampann
maante hain
jis-ne apni srishtee ko
sunder banaane ke liye
aakash mein 
asankheye
jag-magaate 
sitaaron ki
rachnaa kee


kis parkaar....kyun...
itnee badi
bhool 'WOH'
kar baitha
aur


tumhaari
aankho mein
jyoti daalnee
bhool gaya
aur tumhen
andhaa banaa diya


anarth....ghor anarth


mein
fir ghoomta hoon
aur apne antarman mein
jhaankta hoon
sochta hoon
is
vi-sangatee ke prati
kya hum 
kuch naheen........
kuch bhee naheen....
kar sakte....




jo chhaaho.....
kya woh 
ho jaata hai...
mil jaata hai....


chaahne-na-chaahne 
se kuch naheen hota


jo 
mil jaaye.....
jo 
mukqaddar mein hai
use 
kabool kar lena....




apni 
izzat ke liye 
ladne kee 
zaroorat naheen


log 
izzat denge 
agar 
tumhein 
izzat ke 
kaabil paayenge




lad kar 
tum.....  
kisi ke dil mein 
izzat paida 
naheen ker saktee


ladna  to .....
rape hai.....
blaatkaar hai.....


blaat...kaar   
yaani woh  kaam jo zabardastee kiya jaaye woh blaatkaar hee hai aur jo kaam zabardasti karwaya jaaye woh bhee to blaatkaar hee hua

उस महा नायक नहीं 
महा नालायक को तो 
मिला राष्ट्र-पिता का सम्मान 
उसको क्या मिला 
जिसने ताशकंद में 
लुटाई अपनी जान 

क्या है भारत की शान 
टुकड़ा-टुकड़ा  
हो गया हिन्दोस्तान 
कृपा की महान.............
जय गाँधी......जय गाँधी.........महान 

उस करमचन्द के बच्चे 
पर मैं जाऊं वारी-वारी 
जिसके सदके आज 
आतंकवाद बना 
सब से बड़ी बीमारी

ना भारत-पाक का बंटवारा होता
ना ताशकंद में शास्त्री मारा होता
ना कश्मीर के मसले ने 
सांप जैसा सर उभारा होता

आतंक और आतंकवाद जहां से 
पनप रहा है 
वो और कुछ नहीं 
बापू का दिया तोहफा है
जो हर पल खनक रहा है 

भारत-पाक बंटवारे को अगर 
शुरू में ही पनपने ना देते 
तो आतंकवादी  कहाँ से 
जनम लेते 

आज गाँधी जयंती की जगह 
तालिबान जयंती मनाई जानी चाहिए 
बापू को सच्ची श्रदांजली तभी  होगी 
जब 
जय हो तालिबान-जय हो तालिबान 
की गूँज सरे आम  होगी 

जय गाँधी
जय गाँधी
.
.
भूल जाओ शास्त्री
शास्त्री का क्या है 
जो शास्त्र पढ़ ले  वो शास्त्री 


गाँधी बनो ....बनो गाँधी 

किसी ने ठीक ही कहा है 

वाह रे गाँधी 
कैसी चली तेरी आंधी
आया था लंगोट में
जा बैठा 
100-500  और 
.
.
.

1000  के नोट में

हाथ की लाठी को बनाया 
राजनीती की काठी 

भगत सिंह का बलिदान 
शास्त्री की जान
भारत की शान 
सब खा गया 
बापू महान