Wednesday, October 10, 2012


अपने  आते  थे 
खाते  थे 
और 
चले  जाते  थे 
और 
जा  कर 
खिल्ली  उड़ाते  थे 
......मुर्गी  अच्छी   फंसी 

इसी  लिए 
आज-कल 
अपनों  को  घास  डालना  छोड़  दिया  है 
अब  बेगानों  से  यारी  है 
जिन्हें  कम-से-कम  एहसास  तो  होता  है 
कि  खा  रहे  हैं 
और  वोह  सोचते  हैं 
कि  खा  रहे  हैं  तो .....
नमक  हलाली  भी 
करनी  होगी 

फिर  यूं  भी 
बेगाने  कुरेदते  तो  नहीं 


कहते  हैं 
बन्दर  को  
फोड़ा  (नासूर )
ना  हो 
वोह  मर  जाएगा 

अपने  आयेंगे 
हाल  पूछेंगे 
और  फोड़ा .....
देखते-देखते 
कुरेद-कुरेद  कर  
फोड़े  से  
ज़ख़्म  बना  देंगे 

बन्दर  बेचारा 
रोक  भी  तो  नहीं  सकता 
अपने  हैं 
हमदर्दी  जता  रहे  हैं 
और  वोह  फोड़ा  जो  कुरेदते-कुरेदते  ज़ख़्म  बन  चूका  है 
फाड़  फेंकेंगे 
और  बन्दर  बेचारा  मर  जाएगा 

मैं  
मरना  नहीं  चाहता  
किसी  अपने  ने 
खा  कर  (दिल )
वायदा  लिया  था 
कि  
जब  "मैं " बेगाना  बन  जाऊं 
तो  आत्महत्या  मत  करना 

हाँ 
जब  अपने  कुरेदते  हैं 
तो 
यूं  लगता  है 
कि  मैं  
तिल-तिल  कर  मर  रहा  हूँ 
अपन्री  मौत  का  सामान  
खुद  तय्यार  कर  रहा  हूँ 

और  अपनी  मौत  का   सामान  तय्यार  करना 
आत्महत्या  ही  तो  है 

इसी  लिए 
मैं  अपनों  से  दूर .........
बेगानों  में  पलता  हूँ 
कि 
वोह .....
कुरेद  ना  पायें 

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