जो चाहो .....
क्या वो
हो जाता है ...
मिल जाता है ....
चाहने-ना-चाहने
से कुछ नहीं होता
जो
मिल जाए .....
.
.
जो
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मुक्कदर में है
उसे
कबूल कर लेना ....
अपनी
इज्ज़त के लिए
लड़ने की
ज़रुरत नहीं
लोग
इज्ज़त देंगे
अगर
तुम्हें
इज्ज़त के
काबिल पायेंगे
लड़ कर
तुम .....
किसी के दिल में
इज्ज़त पैदा
नहीं कर सकते
लड़ना तो रेप है .....
बलात्कार है .....
बलात-कार
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यानी वो काम
जो ज़बरदस्ती किया जाए
वो बलात्कार ही तो है
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और जो काम ज़बरदस्ती
करवाया जाए
वो भी तो
बलात्कार ही हुआ
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