Saturday, October 6, 2012


आँखों से जो टपका अश्क वो चुन लिया मैंने 
तेरे सारे तानों-बानों को सुन लिया मैंने
दर्द जो अश्कों में समाया तेरा 
अपने दिल जिगर में तेरे होंठों के 
रस्ते संजो लिया मैंने 
अब यही दर्द मेरी मल्कियत भी है और 
खजाना भी 
अब मेरे खजाने में से हिस्सा मत मांग लेना 
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मेरा  गम  बाँटना  चाहते  हो 
मेरा  गम  पूछते  हो 
नहीं  बताऊँगा 


कहते  हैं  बाँटने  से 
गम  आधा  हो  जाता  है 


मेरा  गम  पूछ  कर 
बाँटना  चाहते   हो 


यानी  कि  अपनी  ही  दी  हुई 
सौगात ...........
वापिस  लेना 
चाहते  हो 


कुछ  तो  शर्म  करो 


गैरतमंद  लोग 
कुछ  दे  कर 
वापिस  नहीं  लिया  करते 

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