Monday, September 10, 2012

यारो उस-से मिलने की कोई सूरत तो बता दो .......मुझे मेरा प्यार वापिस दिला दो


मेरा इक मित्र है
सब उसे लुव गुरु कहते हैं

इक दिन मुझे मिला
और रटा-रटाया जुमला दाग दिया
क्या हाल बना रखा है
दाढ़ी को मजनू की तरह बढ़ा रखा है
किस बात का गम है
मुझे बताओ
कुछ तो समझाओ
आखिर मित्र किस दिन काम आते हैं

यूं ही उसे परखने के लिए
मुंह से निकल गया
.
.
.
.
.
अपना प्यार अपना न रहा हो
उसे पाने का कोई उपाय सुझाओ
लुव गुरु अपने गुरु होने का कर्तव्य निभाओ
मैं उलझ गया हूँ
मेरी उलझन सुलझाओ
मुझे मेरा प्यार वापिस दिलाओ

मित्रों ने पूछा
कहाँ  खो  गया  आपका  प्यार ...?

मैंने कहा
अगर मुझे पता ही होता
तो तुम लोगों
के आगे क्यों रोता

बातें करने से बात नहीं बनने वाली
मुझे तो चहिये वापिस मुझे प्यार करने वाली
यारो उस-से मिलने की कोई सूरत तो बता दो
मुझे मेरा प्यार वापिस दिला दो
नहीं तो मुझे माटी की मूर्त बना दो

मित्रों ने शायद शब्दों का अर्थ गलत लगा लिया
और एक नया सवाल मुझे थमा दिया
कहने लगे ..............
सूरत  तो  आप  ही  बताओगे  ..
तभी  ना  जाके  उसे  पाओगे ..


   
 मैंने कहा
सूरत है भोली भाली
पर दिल की है इकदम काली
वो है मेरी घर वाली

जीना दूभर कर रखा है
धोबी का कुत्ता
न घर का न घाट का
बना रखा है

प्यार की बात करता हूँ तो डांटती है
शब्दों में जैसे जहर भरा हो
ऐसे बात-बात पर
नागिन की तरह फुफकारती है


व्यथा किन शब्दों में बयाँ करूं
कैसे मैं किस्सा घर का सरे आम करूं













सूरत से भोली भाली है
 पर                         
 दिल की इकदम काली है






                         






















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