Sunday, September 23, 2012


खुदा तेरी रहमत का साया बहुत है
जरूरी नहीं तू गले से लगाये 

है काफी बस इतना 
कि रोयें अगर हम 
तू दे कर तस्सल्ली 
ज़रा मुस्कराए 

वो शैतान क्यूँ बन गये 
राज़ क्या है 
या कह दे नहीं हैं 
वो हव्वा के जाए 

यहाँ से ख़ुशी 
भागती जा रही है 
लपकते चले आ रहे
गम के साये

चमन की ज़रा बेकसी 
देखना तुम 
की खुद बागबां अपना 
आशियाँ जलाए 

मेरी मौत पर 
हंस रहा था जमाना 
फरिश्तों के आंसू 
मगर रुक न पाए 

है काफी कि मालिक
निगाहों में तू है 
"घायल" तुझे नींद आये न आये 
(कब्र में)

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