Saturday, September 15, 2012

इक सूनी सी राह .... लेकिन .. उसके लौट आने की चाह ...


इक सूनी  सी राह ....
लेकिन ..
उसके लौट आने की चाह ...

क्यूँ कि चाह तो चाह होती है 
चाह पर किसी का वश नहीं होता

क्यूँ  भाती हैं  मुझे सूनी-सूनी सड़कें ,
क्यूँ  तकती हूँ  मै इन राहो को,

इन राहों से 
लगता कोई पुराना नाता है 
यहाँ आ कर कोई जो दिल-आत्मा में 
बसा है याद आता है  

क्यूँ  फैली हुई दिखती हैं बादलो की तरह, 
तुम्हारी बाहें, जिन्हें देख कर 
उदास मन  खिल जाता है,

जब प्यार सच्चा हो 
तो हर शै में उस-की ही 
तस्वीर नज़र आती है 
और आखिर में तस्सवुर बन जाती है 


हर आहट पर,
क्यूं बादलों  की उमड घुमड दस्तक देती है मेरे मन पर ,
की तुम आओगे  
तुम जरूर आओगे  ...






 विश्वास है तो आएगा 
हर हाल में आएगा 
उसे आना ही होगा 
बिना आये वो 
रह ही ना पायेगा 




और इसी चाह में ,
इसी राह पर 
मील का पत्थर हो के 
रह गयी हूँ मै ,
सिर्फ तुम्हारे लिये ......

मील का पत्थर हो या 
लाईट हॉउस 
औरों को राह दिखाता है 
कालान्तर का ध्रुव तारा बन जाता है 

ध्रुव तारे की महत्ता से हर कोई वाकिफ है 
इस से सिद्ध होता है की तू भी ध्रुव तारे के माफिक है 

3 comments:

  1. aapne meri kavita ko apne habdo'n ke sath jodkar jiss andaaz main pesh kiya hai hume bahut achha laga . Shukriya.

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  2. यह मेरा नया प्रयोग है " सवाल किसी के जवाब मेरे" या कह सकते हैं तर्क-वितर्क
    आपको अच्छा लगा धन्यवाद्

    आप का आशीर्वाद और शुभ कामनाएं साथ रहीं तो शायद और भी निखार आ जाये

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